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चाची ने अपनी भाभी की चूत दिलवाई

देसी आंटी सेक्स कहानी में पढ़ें कि भाभी की चाची के घर गया तो उनकी भाभी मेरे लंड को पसंद आ गयी. मैंने कैसे चाची की भाभी की चुदाई का जुगाड़ बिठाया?

सभी चूत की देवियों और लंड के महाराजाओं को मेरा सादर प्रणाम.
मैं रोहित अभी बाईस साल का लौंडा हूं. मेरा लंड काफी मोटा है जो किसी भी चूत की गहराई में उतर कर उसकी पूरी खुजली मिटा सकता है.

मैंने अपनी पिछली गरम सेक्स कहानी
भाभी की चाची चुदी सरसों के खेत में

भाभी की चाची चुदी सरसों के खेत में- 1

में बताया था कि मैंने रास्ते में भाभी की चाची कलावती जी को जमकर बजाया था.

अब आगे की देसी आंटी सेक्स कहानी पढ़ें.

शाम को कलावती जी के मायके पहुंचने के बाद कलावती जी की भाभी ने मेरा हालचाल पूछा और चाय बनाई.

जब वो चाय देकर वापस जाने लगीं तो मेरी नजर उनकी मटकती हुई बड़ी गांड पर जा पड़ी.
मेरे लौड़े को उनकी गांड खटक गई.

मैंने सोचा ये क्या है … अभी तो कलावती जी के भोसड़े के रस में तरबतर मेरा लौड़ा सूखा भी नहीं था और अब ये भाभी जी फिर से मेरे लौड़े को खड़ा कर रही हैं.
ये लौड़ा भी अब ज्यादा ही हब्शी हो गया है.
जहां थोड़ी सी अच्छी चूत दिखी … बस खड़ा हो जाता है.

मैं अपने लौड़े को सम्भालने की कोशिश करने लगा.
तभी भाभी जी चाय का कप लेकर मेरे सामने नीचे ही बैठ गईं.
मैं उनके सामने चारपाई पर बैठा था.

मेरी नजर उनके नैन नक्श और बड़े बड़े पपीते जैसे उरोजों पर जा पड़ी जिन्हें भाभी जी ने पल्लू से ढक रखा था.

वो बैठी बैठी मुझसे बातें कर रही थीं … लेकिन उनको देख देखकर मेरी हालत खराब हो रही थी और मेरा लौड़ा पूरी तरह से तनकर सख्त, मजबूत हथियार बन गया था.

तभी उनकी नजर मेरी पैंट के उभार पर पड़ी.
वो समझ गईं कि मेरा लौड़ा उनको देखकर तूफान मचा रहा है.

उन्होंने तरीके से पल्लू ठीक करके स्तनों को अच्छे से ढक लिया.
उनके इस भारी भरकम गुद्देदार बदन ने मेरे लौड़े में आग भड़का दी.

मैंने सोच लिया था कि इन भाभीजी के भोसड़े को तो नापना ही पड़ेगा.

कलावती जी की इस भाभी जी का नाम पूर्णिमा था.
वो लगभग 47 साल की होंगी.
उन्होंने दो लड़कियों की शादी कर दी थी और उनका लड़का बाहर पढ़ता था.

पूर्णिमा जी सांवले रंग की थीं लेकिन उनके सांवले जिस्म पर भरपूर चर्बी चढ़ी हुई थी.
उनके 36 साइज के बड़े बड़े मम्मे ब्लाउज में नहीं समा रहे थे. उनके बोबे नीचे झूल रहे थे.
उनकी 34 साइज कमर पर काला चमड़ा यानि पेट की चर्बी झूल रही थी.

भाभीजी के कंधों से नीचे आती हुई मजबूत सांवली रंग की भुजाएं और कलाइयां मुझे उत्तेजित कर रही थीं.

इन सबके नीचे उनके 36 इंच के गद्देदार बड़े बड़े कूल्हे मुझे लौड़े को मसलने पर मजबूर कर रहे थे.

मैंने मौका देखकर कलावती जी से कहा– चाची जी, आपकी भाभी का भोसड़ा खाने का मन कर रहा है. आप कैसे भी करके उनको मेरे लिए सैट करो.
कलावती जी- रोहित जी, आप बहुत ज्यादा हरामी हो. ये बहुत मुश्किल काम है. मेरी भाभी ऐसी औरत नहीं हैं जो आपका लौड़ा लेने के लिए इतनी जल्दी तैयार हो जाएंगी.

मैं- कलावती जी, इस उम्र में औरत को नए लौड़े से चुदने की बहुत ज्यादा इच्छा होती है. आप एक बार बात करके तो देखो. क्या पता वो तैयार हो जाएं.
कलावती जी- नहीं नहीं … मैं ऐसे कैसे भाभी से पूछ सकती हूँ? एक काम करो, आप ही खुद उनसे पूछ लो.

मैं- आपकी तो पूछने में ही गांड फट रही है. एक काम करो, आप मेरे सामने ही उनसे पूछ लेना. बाकी सब मैं देख लूंगा.
कलावती जी- अरे … लेकिन वो मेरी भाभी हैं. ये मेरे लिए बहुत मुश्किल काम है, मैं नहीं पूछ पाऊंगी.

मैं- कलावती जी समझने की कोशिश करो. अगर मैं खुद ही पूछ लेता तो आपसे कहता ही नहीं. आप एक बार उनके सामने मुद्दा तो छेड़ना. अगर बात बिगड़ी, तो मैं मेरे ऊपर ले लूंगा.
कलावती जी- ठीक है, मैं कोशिश कर लूंगी. लेकिन बात मेरे ऊपर नहीं आनी चाहिए.
मैं- ठीक है, आप पर कोई आंच नहीं आएगी.

अब जैसे तैसे करके मैंने लौड़े को मसलते हुए रात निकाली.

फिर सुबह हुई तो चाय पीने के बाद भाई जी खेत पर निकल गए और पूर्णिमा की सास जानवरों को चारा डालने लगीं.

कुछ देर बाद पूर्णिमा जी खाना बनाने लग गईं. उनकी चर्बी चढ़ी हुई सांवली पीठ मेरी तरफ थी.

तभी मैंने कलावती को पूर्णिमा जी से पूछने के लिए इशारा किया लेकिन उनकी तो गांड फट रही थी.

मैंने फिर दोबारा से इशारा किया तो इस बार कलावती जी ने डरते हुए बोल दिया- भाभी, रोहित जी आपसे कुछ कहना चाह रहे हैं.
भाभी जी- क्या कहना चाह रहे हैं … क्या वो सीधे मुझसे नहीं कह पा रहे हैं?

कलावती जी- भाभी जी, बात कुछ ऐसी है कि मैं भी आपसे सीधे सीधे कहने में हिचक रही हूँ.
भाभी जी- ऐसी क्या बात है दीदी सा?

कलावती जी- वो आपके साथ कुछ मस्ती करना चाहते हैं.
भाभी जी- मस्ती करना चाहते हैं … इसका क्या मतलब हुआ दीदी सा?

कलावती जी- व्व…वो आपको चोदना चाहते हैं.
ये सुनते ही पूर्णिमा जी के होश उड़ गए.

फिर उन्होंने मेरी ओर मुँह करके पूछा- रोहित जी, कलावती जी क्या कह रही हैं?
मैं- हां पूर्णिमा जी, ये जो कह रही हैं, वो सच है. मैं आपको चोदना चाहता हूं, अगर आप भी तैयार हो तो.

भाभीजी- ऐसा नहीं हो सकता है. मैं तैयार नहीं हूं.
मैं- कोई बात नहीं पूर्णिमा जी. आपकी जैसी इच्छा.

अब मैंने जानबूझकर आगे कुछ नहीं कहा. थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा गई.

फिर पूर्णिमा जी ने कहा- आपने ऐसा सोचा भी कैसे रोहित जी कि मैं आपके साथ ऐसा कर सकती हूँ.
मैंने कहा- पूर्णिमा जी, मैं आपको देख कर बहुत उत्तेजित हो जाता हूँ, इसलिए मैंने ऐसा कहा है. मेरा बहुत मन कर रहा है.

पूर्णिमा जी हल्की सी मुस्कान देती हुई बोलीं- आपका मन कर रहा है तो आप क्या समझते हैं कि मेरा मन भी कर रहा होगा?
मैंने कहा- हां ये मुझे नहीं मालूम है पर तब भी मैंने कलावती जी के माध्यम से आपसे पूछा है.

पूर्णिमा जी- मतलब आपका बहुत ज्यादा मन कर रहा है?
मैं- हां पूर्णिमा जी, बहुत ज्यादा मन कर रहा है. आप एक बार मेरा लंड लेकर तो देखो. आपको मज़ा आ जाएगा.

कलावती जी- भाभी ले लो न! फुल रगड़कर चोदते हैं. कसम से आप इनसे चुदकर निहाल हो जाओगी.
पूर्णिमा जी- क्या? आप पहले इनका ले चुकी हो क्या?

कलावती जी- हां भाभी, कल आते टाइम इन्होंने मुझे रास्ते में ही पेल दिया था. दर्द तो हुआ, लेकिन बहुत मज़ा आया. अब आप भी ज्यादा सोचो मत और ले ही लो.
थोड़ी देर पूर्णिमा चुप रहीं, अब उनकी आंखों में भोसड़े में लौड़ा लेने की चमक दिख रही थी.

तभी पूर्णिमा जी ने मुस्कुराते हुए कहा- देखती हूं. पहले मैं खाना बना लेती हूं, फिर बताऊंगी.
मैंने कहा- एक बार देख लो … हो सकता है, कुछ जल्दी मन बन जाए.

पूर्णिमा जी मेरी तरफ देखने लगीं तो मैंने अपने लंड को पैंट के ऊपर से ही सहला दिया.
फिर मैंने कलावती जी को इशारा किया तो वो मेरे नजदीक आ गईं और मेरे लंड को सहलाने लगीं.

मेरा लंड फूल गया था तो कलावाती जी की आंखों में चमक आ गई.
मैंने भी आंख मार कर लंड बाहर निकालने का कह दिया.

मैं देख रहा था कि पूर्णिमा जी की आंखें मेरे लौड़े के बाहर निकलने का इन्तजार कर रही थीं.

तभी कलावती जी ने मेरे पैंट की चैन खोल कर लंड बाहर निकाल लिया.
मेरा लंड एकदम तना हुआ था. खड़ा लंड बड़ा ही भीमकाय लग रहा था.

पूर्णिमा जी ने लंड देखा तो उनकी आंखें फ़ैल गईं और मुँह खुला का खुला रह गया.

कलावती जी ने लंड दिखाते हुए अपनी भाभी को आंख मारी और कहा- डंडा कैसा लगा भाभी सा?
पूर्णिमा जी ने हंस कर पल्लू से मुँह ढक लिया.
उनकी आंखों में लंड की चाहत साफ़ दिखाई दे रही थी.

कलावती जी ने कहा- एक बार मुँह से कुछ तो कह दो भाभी सा?
पूर्णिमा जी ने सर हिलाकर हामी भर दी और कहा- खाना से फुर्सत हो जाने दीजिए.

फिर खाना बनकर निपटने के बाद उन्होंने मुझे खाना परोसा.
वो मेरे सामने ही बैठी थीं. उन्हें मेरे लंड का तम्बू साफ साफ नजर आ रहा था.
मैं भी उन्हें घूरे जा रहा था.

तभी मैंने पूछा- बोलो पूर्णिमा जी. अब ज्यादा देर मत करो, नहीं तो मौका छूट जाएगा.
थोड़ी देर सोचकर पूर्णिमा जी बोलीं- लेकिन सासू जी तो अभी यहां ही हैं. इनके रहते कैसे क्या होगा?

इतने से मैं समझ गया था कि पूर्णिमा जी भोसड़ा दिखाने के लिए तैयार हैं. अब बस मुझे उनके भोसड़े में लौड़ा ठोकना बाकी है.

मैंने कलावती जी से कहा- आप आपकी मम्मी को यहां से कहीं लेकर जाओ.
कलावती जी ने कहा- ठीक है, मैं कोई प्लान बनाती हूं.

अब मैं पूर्णिमा पर चील की तरह नजर गड़ाए बैठा था. मेरा लौड़ा अब पूर्णिमा के भोसड़े में घमासान मचाने के लिए तड़प रहा था.

थोड़ी देर बाद कलावती जी उनकी मम्मी को गोबर के उपले थापने के लिए बाड़े में ले गईं.

उस समय पूर्णिमा बर्तन मांज रही थीं. मैंने उनका हाथ पकड़ा और उन्हें खींचकर घर में ले आया.

पूर्णिमा- रोहित जी, हाथ तो धोने दो. देखो कितनी सारी राख लगी हुई है.
मैं- कोई बात नहीं, मैं सब साफ कर दूंगा.

अब मैंने पूर्णिमा जी को घर के अन्दर खींचकर दरवाज़ा बंद कर अन्दर से सांकल लगा दी.
मेरा लौड़ा पूर्णिमा के बड़े भोसड़े को खाने के लिए तैयार था.

मैंने पूर्णिमा जी को कसकर बांहों में जकड़ लिया और उन्हें दीवार के सहारे खड़ा करके ताबड़तोड़ उनके रसीले बड़े बड़े होंठों पर किस करने लगा.
मैं उनके होंठों को बुरी तरह से खाने लगा.

घर के शांत माहौल में ‘पुच्छ पुच्छ पुच्छ सी सश्स पुच्छ …’ की आवाजें गूंजने लगीं.

पूर्णिमा मदहोश सी होने लगीं.

तभी मैंने हाथ पीछे ले जाकर पूर्णिमा की भारी भरकम गांड को मसल डाला.
वो बैचेन सी होने लगीं.

मैं उनके होंठों को लगातार पी रहा था लेकिन पूर्णिमा जी मेरे होंठ नहीं खा पा रही थीं.

शायद पूर्णिमाजी के पति उनको बिना किस किए ही चोदते होंगे.
लेकिन मैंने तो उनके होंठों को खाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.

मैंने पूर्णिमा जी के रसीले होंठों को बुरी तरह से चूस डाला.

इसी बीच उनका साड़ी का पल्लू सिर से खिसककर नीचे गिर पड़ा.

तभी मैंने उनके बड़े बड़े मम्मों को पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा.
पूर्णिमा के बोबे ब्लाउज में पपीते की तरह लटके हुए थे. मुझे उनके मोटे मोटे स्तनों को दबाने में बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा था.
उनके बोबे एकदम गद्देदार थे.

भाभीजी धीरे धीरे गर्म होने लगीं.
अब उनके मुँह से सिसकारियों की आवाजें आने लगी थीं.

भाभीजी- ओह रोहित जी, थोड़ा धीरे धीरे दबाओ ना!
मैं- ओह पूर्णिमा जी … आपके बोबे कमाल के हैं. मेरा तो इन्हें खा जाने का मन कर रहा है.

तभी मैंने ज़ोर से दोनों स्तनों को बुरी तरह से भींचकर निचोड़ डाला.

भाभीजी ज़ोर से चीख पड़ीं- आह ओह धीरे धीरे रोहित जी.

मैं पूर्णिमा जी के स्तनों को बुरी तरीके से मसले जा रहा था. वो बहुत ज्यादा बेचैन हो रही थीं.

अब मैंने उनके ब्लाउज के अन्दर हाथ घुसा दिया.
वाह पूर्णिमा के क्या मखमली बोबे थे. उनके स्तनों का स्पर्श पाकर मेरा लौड़ा और भी ज्यादा तन गया.
मैं ब्लाउज के अन्दर ही उनके स्तनों को मसलने लगा.

पूर्णिमा जी और ज्यादा तड़पने लगीं.

कुछ देर बाद मैंने हाथों को ब्लाउज में से बाहर निकालकर उनके कंधों पर रख दिए और उनकी मजबूत मोटी सांवली कलाइयों को रगड़ने लगा.

पूर्णिमा जी के हाथों को मसलते हुए उनके रसीले होंठों को मैं फिर से खाने लगा.
उनकी गर्मागर्म सांसें मुझे पागल कर रही थीं.

मैं समझ चुका था कि इनका भोसड़ा पूरी तरह से गर्म हो चुका है.

तभी मैंने एक हाथ नीचे ले जाकर पेटीकोट को ऊपर उठाया और पूर्णिमा की चड्डी में घुसा दिया.

इससे पूर्णिमा जी का भोसड़ा मेरे हाथ में आ गया जो बहुत ज्यादा गर्म और गीला हो रहा था.
तभी मैंने मेरा हाथ पूर्णिमा के गर्मागर्म भोसड़े में घुसा दिया.

मेरे इस आक्रमण से पूर्णिमा तिलमिला उठीं और दर्द से तड़पने लगीं.

तब तक मैं उनके बड़े भोसड़े को मुठ्ठी में भरकर मसलने लगा था.
इससे वे ज़ोर ज़ोर से सिसकारियां भरने लगीं- ओह रोहित जी, मार ही डालोगे क्या?

मैं- पूर्णिमा जी, मैं क्या करूं? आपकी नीचे की चीज ही इतनी शानदार है.

मैं पूर्णिमा जी के भोसड़े को कुरेदे जा रहा था और वो ‘आह आह ओह उफ्फ उफ्फ ओह …’ करती जा रही थीं.

मेरे इस आक्रमण को पूर्णिमा जी ज्यादा देर तक झेल नहीं पाईं. कुछ देर बाद उनके भोसड़े ने मेरे हाथ में पानी उड़ेल दिया.

पूर्णिमा- रोहित जी, मेरी हालत खराब हो रही है. अब जल्दी से अन्दर डाल दो, नहीं तो मैं मर जाऊंगी.
मैं- ठीक है पूर्णिमा जी, मेरा लौड़ा भी अब आपके भोसड़े को खाने के लिए उतावला हो रहा है.

मैंने चारपाई बिछा दी और फिर भारी भरकम पूर्णिमा को उठाकर चारपाई पर पटक दिया.

अजब गजब नज़ारा था, पूर्णिमा जी अपने बड़े से भोसड़े में मेरा लौड़ा लेने के लिए अधीर हो रही थीं और मैं उनके भोसड़े का लावा पीने के लिए नंगा हो रहा था.

मैंने कुछ ही पलों में मेरी पैंट और शर्ट उतार दी. अब अंडरवियर में मेरा लौड़ा बाहर आने के लिए दरवाज़ा खटखटा रहा था.

मैं भी चारपाई पर चढ़ गया.
मेरे चढ़ते ही चारपाई चुर्र चुर्र करने लगी. मैंने अपने लिए चारपाई पर जगह बनाते हुए पूर्णिमा जी की दोनों भरी भरकम गुद्देदार मजबूत सांवली टांगों को ऊपर करके फैला दिया.

पूर्णिमा जी की साड़ी और पेटीकोट एक बार ही बार में खिसककर नीचे आ गए, जिससे भोसड़े के ऊपर पहनी हुई लाल चड्डी के दर्शन हो गए.

मैंने एक ही झटके में उनकी लाल चड्डी को निकालकर नीचे फैंक दिया.
अब पूर्णिमा जी का काला सा बड़ा भोसड़ा मेरे सामने आ गया.

उनके भोसड़े के आस पास कली घनी झांटों का जंगल बन हुआ था. काली झांटें पूरी तरह से गीली थीं.

मैंने तुंरत ही मेरा मुँह पूर्णिमा जी के काले बड़े भोसड़े पर रखा और भोसड़े की फांकों को खाने लगा.

पूर्णिमा जी एकदम से सिहर उठीं. शायद पहली बार उनके भोसड़े पर मर्द की जीभ लगी थी.

मैंने काले भोसड़े की अन्दर गहराई में जीभ घुसा दी और वासना में तल्लीन होकर भोसड़े को चूसने लगा.
अब पूर्णिमा जी की सिसकारियां लगातार बढ़ती जा रही थीं.

वो पागल सी हो रही थीं. ऐसा लग रहा था कि जैसे उन्हें चूत चटवाने का बिल्कुल भी अनुभव नहीं है या यूं कहें कि अब तक किसी ने उनकी चूत को चाटा और सहलाया ही नहीं था.

इस वजह से उनके भोसड़े ने जल्दी ही अपना गर्मागर्म लावा मेरे मुँह में भर दिया.
मैंने उनके गर्म लावे को सबड़ सबड़ कर पी लिया.

अब मुझसे सब्र नहीं हो रहा था.
मैंने तुरंत ही पहले तो उनकी भूरे रंग की साड़ी को पेटीकोट में से बाहर निकाला फिर पेटीकोट के नाड़े को खोला.

मैंने उनकी मोटी सांवली भारी गांड को हल्का सा उठाकर पेटीकोट और साड़ी को निकाल दिया और उनको नीचे से पूरी नंगी कर दिया.
उनकी सांवली जांघें मेरे सामने थीं, जिन पर भयंकर चर्बी चढ़ी हुई थी.

कुछ देर तक मैंने उनकी जांघों को रगड़ा, फिर मैं आगे बढ़ा और पूर्णिमा जी के मखमल के जैसे काले पेट पर किस करते हुए उनके बड़े बड़े मम्मों को फिर से पकड़ कर मसल दिया.

मैंने पूर्णिमा जी के ब्लाउज के बटन खोल दिए.
पूरे बटन खुलते ही पूर्णिमा जी के बड़े बड़े चूचे उछाल मारने लगे.

मैं पूरी तरह से पूर्णिमा जी पर टूट पड़ा और जोर जोर से उनके चूचों को मुँह में भरकर चूसने लगा.

वो पागल हुई जा रही थीं.
पूर्णिमा जी की कामुक सिसकारियां अपने उफान पर थीं.

तभी उन्होंने सांवली मोटी मोटी कलाइयों से मुझे कसकर अपनी बांहों में जकड़ लिया.
मेरे पूरे शरीर का दबाव पूर्णिमा जी के गदराए सांवले नशीले बदन पर था.

हम दोनों गुत्थम गुत्था हो रहे थे जिससे खाट और तेज चर्रर चर्र कर रही थी.

तभी मैंने अपने एक हाथ को पीछे ले जाकर मेरी अंडरवियर को खिसका दिया. लेकिन जांघों में मेरी अंडरवियर अटकी हुई थी.

मेरा लौड़ा घोड़े पर सवार हो चुका था. मेरा लौड़ा पूर्णिमा जी के भोसड़े में सीधा वार करने लगा था.

मुझे पूर्णिमा जी के मस्त स्तनों को चूसने में बहुत मज़ा आ रहा था.
अब तक मेरे थूक से पूर्णिमा जी के बोबे पूरे गीले हो गए थे.

मैंने चूचों को चूस चूसकर और मसलकर हलका लाल कर दिया था.
मेरा हथियार काफी सख्त बन चुका था.
मैं इसे पूर्णिमा जी के भोसड़े की सैर कराना चाहता था.

पूर्णिमा जी का ब्लाउज अभी भी उनके सांवले जिस्म की पीठ में अटका हुआ था.

मैं नीचे खिसका और पूर्णिमा जी के भोसड़े पर आ गया. पूर्णिमा जी का भोसड़ा पहले से ही बहुत ज्यादा गीला हो रहा था.

मैंने उनकी मोटी मजबूत सांवली जांघों को पकड़कर चौड़ा कर दिया और उनके काले बड़े भोसड़े की फांकों को चौड़ा करके मेरा लौड़ा भोसड़े के बीचो-बीच खांचे में रख दिया.

मेरे हथियार का सुपाड़ा पूर्णिमा जी के किले को भेदने के लिए तैयार था.
तभी मैंने दोनों हाथों से उनकी मोटी जांघों को पकड़ा और एक ही झटके में लौड़ा पूर्णिमा जी के काले भोसड़े में ठोक दिया.

मेरा लौड़ा दनदनाता हुआ पूर्णिमा जी के भोसड़े के हॉल के पेंदे में पहुंच गया.

वो एकदम से चीख उठीं- आह आह उम्मा ओह ओह उफ्फ ओह आह मर गई!
मैं पिला पड़ा रहा.

पूर्णिमा जी दर्द के मारे बिलबिलाने लगीं- ओह रोहित जी … बाहर निकालो … नहीं तो मैं मर जाऊंगी.
लेकिन मैंने उनकी बात नहीं मानी और लौड़े को भोसड़े में से बाहर निकालकर फिर से उनके काले भोसड़े के छेद में घुसा दिया.

उनका चेहरा पसीने से लथपथ हो गया.
अब मैं ज़ोर ज़ोर से गांड हिला हिलाकर पूर्णिमा जी के भोसड़े में लौड़ा ठोकने लगा.

वो आह आह उह ओह आह करती हुई मेरा लौड़ा अपने भोसड़े में घुसवा रही थीं.

धीरे धीरे मैं स्पीड बढ़ाने लगा जिससे खाट तेज आवाज करने लगी.

पूर्णिमा जी धीरे धीरे शांत हो गईं और मेरे लौड़े को भोसड़े में ठुकवाने का मज़ा लेने लगीं.
मुझे पूर्णिमा जी को पेलने में बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा था.
मेरा लौड़ा मज़े से पूर्णिमा जी के बड़े काले भोसड़े की गहराई को नाप रहा था.

पूर्णिमा जी के बड़े बड़े चूचे ज़ोर ज़ोर से हिलने लगे थे.
लौड़े के लगातार खचाखच हमले की वजह से पूर्णिमा जी का भोसड़ा जल्दी ही पस्त हो गया और भोसड़े में चूतरस लबालब भर गया.

अब मेरा लौड़ा पूर्णिमा जी के भोसड़े के रस में सराबोर हो गया था.
मेरे लौड़े के उनके भोसड़े में घुसने निकलने से चूतरस भोसड़े से बाहर बहने लगा.

मैं रुक गया और भोसड़े में मुँह डालकर चूत रस को पीने लगा.
पूर्णिमा जी निढाल होकर पड़ी हुई थीं.

तभी उनके भोसड़े में सुरसुरी हुई और उन्होंने मेरा मुँह भोसड़े में दबा दिया.
अब मैं ज़ोर ज़ोर से भोसड़े को पीने लगा.

कुछ देर बाद मैंने फिर से मेरे हथियार को पूर्णिमा जी के भोसड़े के छेद में फंसाया और फुल स्पीड में उनको चोदने लगा.

पूरे घर में फव्हच फक्च फच्च फच्च की आवाजें गूंजने लगीं.
पूर्णिमा जी की हालत खराब होने लगी.

शायद आज पहली बार ही उनकी इतनी अच्छी चुदाई हुई थी.
वो धीरे धीरे आह आह उह उह किए जा रही थीं.

मैं पूर्णिमा मोटी मजबूत सांवली कलाइयों को अपने दोनों हाथों में दबाए हुए उन्हें चोद रहा था.

अब तक पूर्णिमा जी का भोसड़ा भयंकर रूप से घायल हो चुका था.
उन्होंने फिर से उसमें पानी छोड़ दिया.

वो खाट पर निढाल पड़ी हुई थीं और मैं उनको पेलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा था.

पूर्णिमा जी के काले भोसड़े की गुलाबी झील भी बाहर आने लगी थी.

अब मेरा लौड़ा भी पानी छोड़ने वाला था.
कुछ ही पलों में मैंने पूर्णिमा जी के काले भोसड़े को अपने सफेद रस से भर दिया.

झड़ने के बाद मैं थोड़ी देर पूर्णिमा जी के ऊपर ऐसे ही पड़ा रहा.
मेरा लौड़ा अभी भी उनके भोसड़े में भीगा हुआ था.

कुछ देर बाद मैं खाट पर से उठा और पूर्णिमा जी भी खड़ी हो गईं.
ब्लाउज अभी भी उनके कंधों पर अटका हुआ था, जिसमें उनके बड़े बड़े चूचे नीचे लटक रहे थे.

मेरा लौड़ा ठंडा होकर लटक रहा था.

तभी पूर्णिमा जी कपड़े उठाने लगीं तो मैंने उनका हाथ पकड़ लिया.

वो चुप थीं.
शायद मेरे हथियार की खतरनाक चुदाई से वो बुरी तरह घायल हो चुकी थीं.
लेकिन मेरा लौड़ा अभी पूरी तरह से शांत नहीं हुआ था, उसमें अभी भी आग बाकी थी.

मैंने पूर्णिमा जी को एक बार फिर से पकड़कर खाट पर पटक दिया.

वो कहने लगीं- सासू जी किसी भी वक्त आ सकती हैं.
मैं- वो अभी नहीं आएंगी, आप चिंता मत करो.

ये कहकर मैंने फिर से उनकी मोटी मोटी जांघों को पकड़ा और एक ही झटके में लंड उनकी भोसड़े में उतार दिया.

खाट फिर से ‘चू चू मैं मैं …’ करने लगी.

फिर घपाघप झटकों के साथ ही उनके भोसड़े और मेरे लौड़े के रस से पूर्णिमा जी का भोसड़ा भर गया.

थोड़ी देर बाद हम दोनों उठ गए. अब हम दोनों ने जल्दी से कपड़े पहने.

मैं- बताइए पूर्णिमा जी, कितना मज़ा आया?
पूर्णिमा जी- जिंदगी में पहली बार किसी ने मुझे इस तरह से चोदा है. सच में आपने तो पूरी गर्मी ही बाहर निकाल दी. अगर फिर कभी मौका मिले, तो जरूर आना.

मैं- क्यों नहीं पूर्णिमा जी, जरूर आऊंगा. आप जैसे माल को कौन नहीं चोदना चाहेगा.

थोड़ी देर बाद कलावती जी और उनकी मां आ गईं.
मैं उनकी ओर देखकर मुस्कुरा दिया.

फिर मैं बाइक स्टार्ट करके आने लगा, तो कलावती जी मेरे पास आ गईं.
मैंने उनसे कहा- आपकी भाभी गजब की माल हैं … मज़ा आ गया.

कलावती जी हंस दीं और बोलीं- मुझे मत भूल जाना.
मैंने भी हंस कर उनके गाल चूम लिए.

अगर कोई भाभी चाची या मौसी मुझसे मिलना चाहती है तो मुझे मेल करें। vcool362436@gmail.com

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